क्राइम स्टोरी इन हिंदी - साज़िश - अध्याय 3: पार्टी
क्राइम स्टोरी इन हिंदी
क्राइम केस - साज़िश
अध्याय 3: पार्टी
सुनसान सड़क पर आयुष अकेला बैग को घसीटते हुए चला जा रहा है। बीच बीच में एकाध ट्रक या कोई बड़ा वाहन उसके पास से धूल उड़ाता हुआ निकल जाता है। आयुष को नौ बजे से पहले पार्टी में पहुंच जाना चाहिए था, पर अभी नौ बजकर दस मिनट होने के बावजूद भी वो अकेला एक सुनसान सड़क पर चला जा रहा है। वो अपनी योजना के मुताबिक पहले ही पहुंच गया होता अगर ये सब बखेड़ा ना खड़ा हुआ होता।
"खैर, इन सब बातों को सोचने का क्या फायदा!" आयुष फुसफुसाता हुआ थोड़ा जल्दी चलने लगा।
जब आयुष उस होटल तक पहुंचा जहां उसके सहपाठी इकट्ठा होने वाले थे, वो सारा गड़बड़ मामला भूल गया और खुश दिखने का अभिनय करने लगा। आयुष के दिमाग में तानिया की एक झलक पसार हुई। थोड़ी क्षणों के लिए उसका दिल थम गया और फिर इतनी जोर से धड़कने लगा कि आयुष को अपने सीने पर हाथ रखकर उसे धीमा करना पड़ा।
आयुष को उन पलों की याद आ गई जब वो स्कूल में उसे चुपके से देखता रहता था। आयुष आखरी बेंच पर बैठता था और तानिया उसके पास की एक कतार छोड़कर तीसरी कतार की बेंच पर। लिखते लिखते आयुष को तानिया उसकी कतार में ही दिखती थी, और जब भी दिखती थी, आयुष का दिल थम जाता था और फिर जोर से धड़कने लगता था। हरबार उसे अपने सीने पर हाथ रखकर दिल की धड़कन को धीमा करना पड़ता था। पर अफसोस की वो अपने दिल की बात तानिया से करने की कभी हिम्मत ही नहीं जुटा पाया।
आयुष चलते हुए होटल के अंदर गया और बैग को भी घसीटते हुए ले गया।
रिसेप्शनिस्ट लड़की ने आयुष को देखकर तुरंत बोला, "आप ही मिस्टर आयुष दीवान होंगे! हैं ना?
आयुष ने जवाब दिया, "जी।"
रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "आपकी पार्टी हॉल में रखी हुई हैं, जो सामने के कॉरिडोर से बाएं जाने पर आपको मिल जाएगा।"
"ठीक है, धन्यवाद।" आयुष ने कहा, "पर आपको मेरा नाम कैसे मालूम है?"
रिसेप्शनिस्ट ने जवाब दिया, "सर, आज इस होटल में सिर्फ एक ही पार्टी दर्ज हुई है और उस पार्टी के सारे लोग इस होटल में चैक-इन कर चुके है। आप अकेले सबसे आखिर में आए हैं, तो मैंने बस अनुमान लगा लिया।"
"अच्छा!" आयुष बोला, "आप जरा मुझे ये बता सकती हैं कि मेरे पास ये जो सामान है उसे में कहां रख सकता हूं?"
रिसेप्शनिस्ट उसे अजीब निगाहों से देखने लगी। शायद सोच रही होगी कि भला कौन आदमी पार्टी में शरीक होने के लिए सामान साथ लिए चलता है!
रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "आप अपना सारा सामान हमारे लगेज रूम में छोड़ सकते हैं।"
आयुष ने कहा, "और वो मुझे कहां मिलेगा?"
रिसेप्शनिस्ट ने जवाब दिया, "उसके लिए आपको वहां तक जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, हमारा कोई वेटर आपके सामान को वहां तक पहुंचा देगा।"
आयुष ने कहा, "नहीं, में खुद अपने सामान को लगेज रूम में रखने जाऊंगा।" ये बात आयुष इतनी जोर से चिल्लाया की रिसेप्शनिस्ट हकबक हो गई।
रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "अगर ऐसा है तो चलिए में आपको आपका सामान लगेज रूम में रखवा देती हूं।"
आयुष ने कहा, "मुझे माफ़ कीजिएगा की में आप पर चिल्लाया, पर परिस्थिति ही कुछ ऐसी है कि में खुद को संभाल नहीं पा रहा हूं।"
आयुष की हड़बड़ाहट देखकर रिसेप्शनिस्ट उसे शंकास्पद निगाहों से देखने लगी और सोचने लगी कि न जानें वह कौन सी परिस्थिति की बात कर रहा होगा।
जब दोनो सामान रखकर वापस आए तो रिसेप्शनिस्ट ने आयुष से जल्दी विदा होने के लिए कहा, "सर, अब आप जाकर पार्टी का लुत्फ उठाइए।"
आयुष ने होटल की घड़ी में देखा कि नौ बजकर बीस मिनट हो चुके थे। वह कॉरिडोर में चलता हुआ गया और बाएं मुड़ा। एक दरवाज़ा सामने ही था जिसको खोलते ही शायद उसके ऊपर यादों कि बरसात होने वाली थी।
जैसे ही दरवाजा खोल के उसने पैर अंदर रखा की सब उसको ताकने लगे। सब इस तरह से उसे देख रहे थे कि आयुष को समझ ही न आया कि वह क्या करें!
तभी तहलका मचा और कक्षा के सबसे उपद्रवी लड़के का स्वागत करने के लिए सब उसकी तरफ दौड़े। उस भागदौड़ में उसकी नजर तानिया को ढूंढ़ रही थी, पर तानिया कहीं पर भी आयुष को न दिखी!
अलबत्ता, तानिया की जगह आयुष को राहुल और आशीष दिख गए, जो कक्षा के सारे उपद्रव में उसका साथ कभी नहीं छोड़ते थे। वो दोनों उसकी तरफ नहीं भागे थे बल्कि आराम से बैठकर अपने ड्रिंक कि चुस्कियां ले रहे थे। राहुल और आशीष दोनों को मालूम था कि आयुष आखिर में उनके पास ही आनेवाला था।
इधर सब आयुष का हालचाल पूछ रहे थे और आयुष सबको नजरअंदाज कर रहा था। आयुष को जल्दी से उन दोनों के पास जाना था क्योंकि वो ही दो लोग थे जिन्हें तानिया के बारे में शायद कुछ पता हो!
सभों का अभिवादन लेते हुए वो जल्दी से जाकर राहुल के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया और ड्रिंक का ऑर्डर दिया।
तुरंत ही आशीष ने पूछा, "अबे, तेरी वो तानिया आज पार्टी में नहीं आई, ऐसा क्यों?"
आयुष बोला, "यही बात तो में तुम दोनों से पूछने वाला था कि तानिया क्यों नहीं दिख रही है!"
राहुल बोला, "हमें क्या पता साले, स्कूल में उसका ध्यान तू रखता था, तो तुझे पता होना चाहिए कि नहीं!" इतना बोलकर राहुल खीखियाने लगा।
आशीष भी उसके खीखियाने में शामिल हुआ और हमेशा की तरह दोनो आयुष का मजाक उड़ाने लगे।
आयुष को तभी लाश का खयाल आया और उसने सोचा कि, अगर ज्यादा घंटो तक लाश बैग में रहेगी तो उसमें से दुर्गंध निकलनी शुरू हो जाएगी।
आयुष ने सोचा, "खून करीबन साढ़े सात बजे हुआ होगा और अभी साढ़े नौ बज चुके हैं, मतलब कि दो घंटे हो चुके हैं, अब लाश में से गंध आनी शुरू हो जाएगी। लाश में से गंध आए उस से पहले मुझे उसे ठिकाने लगाना पड़ेगा और मेरे पास ज्यादा समय नहीं है!"
अचानक आशीष ने आयुष को दिमागी दरिए से वास्तविकता कि सपाटी पर लाते हुए बोला, "आज भी तेरी ये पुरानी आदत नहीं छूटी! हैं ना? आज भी सोच में खो जाता हैं!
आयुष ने कहा, "अर, ऐसा कुछ नहीं है, मुझे बस अभी घर के लिए रवाना हो जाना चाहिए।"
राहुल बोला, "ये साला नाटकबाज पूरा नाटक बनाके इस पार्टी में आया है!"
आशीष बोला, "हां, सही है! यही सोचकर आया होगा कि अगर तानिया मिलेगी तो रुक जाऊंगा वरना किसी तरह जान छुड़ाकर वापस।"
आयुष ने कहा, "ऐसा कुछ नहीं है यार, बस थोड़ी सी परेशानी है तो मुझे अब जाना पड़ेगा।"
राहुल ने कहा, "दस बजे से पहले अगर तेरी हिम्मत हैं तो इस कुर्सी पर से उठ के दिखा। कुर्सी से उठेगा तो चार कंधों पे लेट के घर जाएगा।"
आयुष ने कहा, "अच्छा मुझे बाथरूम तो जाने दो!"
राहुल ने कहा, "ठीक है, लेकिन बाथरूम से सीधे यहां वापस आना और कहीं और गया तो तेरी खैर नहीं!"
आयुष उठा और सीधा बाथरूम में भागा।
राहुल ने आशीष से कहा, "तुझे नहीं लगता ये थोड़ा सा बदल चुका हैं?"
आशीष ने जवाब दिया, "हां यार, ये वो आयुष नहीं है जो हमारे साथ पढ़ता था। ये तो सुनमुन बैठा रहता है, पक्का कोई गरबड़ हैं!"
राहुल बोला, "अच्छा, आने दे उसको फिर सब पूछते हैं।"
उधर बाथरूम में आयुष दस बजने की राह देखकर आकुल-व्याकुल हो रहा था। उसे किसी भी तरह इस पार्टी से निकल जाना था।
इधर लगेज रूम में, बैग में से अब धीरे धीरे दुर्गंध शुरू हो चुकी थी जिस बात से अनजान आयुष वापस अपने दोस्तों के साथ आकर बैठ गया था।
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