क्राइम स्टोरी इन हिंदी - साज़िश - अध्याय 2: टैक्सी आर. जे. 6025

क्राइम स्टोरी इन हिंदी

क्राइम केस - साज़िश

अध्याय 2: टैक्सी आर. जे. 6025


क्राइम स्टोरी इन हिंदी

होटल ब्ल्युरूम की लिफ्ट में डिंग की आवाज़ के साथ जब ग्राउंड फ्लोर पे लिफ्ट का दरवाज़ा खुला, तब तक आयुष खुद को संभाल चुका था। लिफ्ट की स्क्रीन पर पहले ही ग्राउंड फ्लौर का 'G' देखकर वह खुद के हावभाव ठीक कर चुका था


दरवाज़ा खुलते ही उसने देखा कि लंबे कॉरिडोर में से एक परिवार लिफ्ट की तरफ आ रहा है। आयुष ने सोचा, "अगर, ये लोग लिफ्ट में घुसे तो गड़बड़ हो जाएगी।" यही सोचते हुए आयुष ने लिफ्ट का दरवाज़ा बंद किया और लिफ्ट को सीधा पार्किंग में ले जाने के लिए पार्किंग का 'P' बटन दबा दिया। परिवार लिफ्ट ना मिलने की वजह से चीखने लगा और उन्होंने ऊपर जाने के लिए बड़बड़ाते हुए सीढ़ियां ली।


पार्किंग में जैसे ही दरवाज़ा खुला, ट्रॉली को धकाकर आयुष एक कोने में ले गया जहां सबसे कम उजाला था। अब वह सोच सकता था कि, "क्या किया जाए?"


उसने सबसे पहले ये सोचा कि क्यों ना पुलिस को खबर कर दी जाए। पर उस विचार को तुरंत हवा कर देने वाला विचार था कि, "अब मैंने भी इस अपराध में हिस्सा ले लिया है। पुलिस मुझे भी सबूत से छेड़छाड़ करने के गुनाह में अंदर कर देगी। और अगर मैंने ये ना किया होता तब भी फंसता।" 


अब आयुष के सामने पुलिस को खबर देने वाला रास्ता खुला नहीं था। उसने कोई और रास्ता खोजने की कोशिश की। पौने नौ बज चुके थे और अब उसे बांद्रा टर्मिनस पहुंच जाना चाहिए था। उसने सोचा, "इस पूरे बैग को ही साथ ले चलता हूं।" आयुष को अपनी किस्मत पे इतना तो विश्वास था की अगर उसने लाश वाली बैग को कही छोड़ा तो जरूर से वह बैग किसी के हाथ लग जाएगी। उसकी किस्मत ने पहले भी कई बार उसको धोखा दिया था, और अब आयुष जान चुका था की किस्मत के भरोसे वह कुछ नहीं कर सकता


किस्मत के बारे में सोचते हुए अचानक आयुष को याद आया किस तरह एक बार किस्मत ने उसके प्यार की ताकत को भी हराया था, वह तानिया के बारे में सोचने लगा था


उसने ट्रॉली में भरे हुए खाने को नजदीक में पड़े डस्टबिन में फेंक दिया और सारे तौलिए ठूंसकर उस बैग में भर दिए जिस में अब भी एक अजनबी की लाश थी।


वेटर्स रूम में उसने जाके सबसे पहले अपने कपड़े बदलने कि सोची। उसे पता था कि अब तक सारे वेटर जा चुके होंगे, क्योंकि साढ़े आठ बजे एक शिफ्ट खत्म होती थी और नौ बजे नई शिफ्ट शुरू होती थी।  


वेटर्स रूम में बैग एक तरफ रखकर जल्दी से आयुष कपड़े बदलने लगा। आयुष ने पार्टी में जाने वाले कपड़े पहन लिए जो वह सुबह घर से अपने साथ लेकर आया था। नीचे जीन्स और पूरी आस्तीन वाली काली कमीज़ पहन ली। अब उसने बैग के पहिए निकाले और उसको खींचकर बाहर लेकर आ गया।


अहलूवालिया को पहले ही बता दिया था कि वो निकलने वाला है। अब उसको सिर्फ ये ध्यान रखना था कि किसी तरह पुलिस का ध्यान उस बैग पर ना जाए। 


आयुष बैग को लेकर होटल ब्ल्युरूम से बाहर निकला और एक टैक्सी को बुलाने के लिए हाथ दिखाया। आज मानो टैक्सी भी आयुष को बचाने आई हो उस तरह से उसके सामने आकर खड़ी हो गई। आयुष ने बैग उठाकर टैक्सी में डाला और खुद दूसरी तरफ के दरवाज़े से टैक्सी में बैठते हुए कहा, "टर्मिनस।"


"जी साब", टैक्सी ड्राइवर बोला।


टैक्सी आज इतने ट्रैफिक में भी आयुष को उड़ती हुई लग रही थी। टैक्सी ड्राइवर ने इतनी फुर्ती से गाड़ी को मुंबई के ट्रैफिक के बीच से भगाया की पच्चीस मिनट का रास्ता, होटल ब्ल्युरूम से टर्मिनस तक का, सिर्फ पंद्रह मिनट में तय कर दिया। 


इस पर आयुष बहुत खुश हुआ। टैक्सी ड्राइवर को एक सौ सत्तर रुपए किराया देकर नीचे उतरा। बैग को बाहर निकाला और टैक्सी ड्राइवर को जाने का इशारा किया। अचानक कुछ याद आने पर पिछले दरवाज़े को ठोककर आयुष ने फिर से टैक्सी को रुकने का इशारा किया। उसने दो सौ रुपए दिए थे, बाकी के तीस जब उसने वापस लिए तो सोचा, "क्यों न तीस रुपए की टिप दे दी जाए।"


टैक्सी वाले ने जो बचे हुए तीस रुपए वापस दिए थे उसको ही टिप देकर टैक्सी वाले को खुश कर दिया। टैक्सी वाले की जेब के ऊपर लिखी हुई नाम कि तख्ती में उसने नाम पढ़ा "इमाम।"


आयुष ने इमाम का धन्यवाद करते हुए कहा, "इमाम मियाँ, आपने मुझे बहुत अच्छी तरह से और सही समय पे मंजिल पर पहुंचवा दिया, आपका धन्यवाद।"


इमाम ने कहा, "क्या साब, ये तो हमारा काम है। मैंने आपको देखकर ही पहचान लिया की आप परेशान है और कहीं पहुंचने को बेताब है।"


यह सुनकर आयुष ने तुरंत अपने हावभाव ठीक कर दिए। उसने सोचा की अगर एक मामूली टैक्सी वाला उसके चेहरे को पढ़ सकता है तो पुलिस तो आराम से उसको पकड़ लेगी।


आयुष को नहीं पता था कि वो कोई मामूली टैक्सी वाला इमाम नहीं था। उसने एक बार फिर इमाम का धन्यवाद किया और उस से विदा ली। 


दूर जाती हुई टैक्सी की नंबर प्लेट पर उसने नंबर पढ़ा, "आर. जे. 6025।" आयुष सोचने लगा कि, "मुंबई में राजस्थान की टैक्सी कैसे चल रही है!"


अब वो टर्मिनस के बाहर खड़ा था और सोच रहा था कि अब कोई भी उसे तानिया को मिलने से रोक नहीं सकता है। आज तानिया भी उस पार्टी में आने वाली थी। वह भी उसकी दोस्त और सहपाठी थी। सब लोग करीबन बारह साल बाद मिलने वाले थे।


तभी उसने देखा कि बैग में से कुछ प्रवाही रिस रहा था। नीचे झुककर जब वह जगह को गौर से देखा तो उसकी आंखो के आगे मानो अंधेरा छा गया। लाश में से अब खून आने लगा था और अब रिसकर बैग से बाहर आ रहा था।


आयुष नहीं जानता था कि कब से ये खून इस तरह से बाहर रिसना शुरू हुआ था। अपनी बेदरकारी पर अब उसे गुस्सा आने लगा था। यूं तो आयुष खुद को तीस मार खां समजता था पर पता नहीं अभी वह क्यों इस तरह की गलतियां कर रहा था। 


उसने सोचा, "अगर खून की बूंदे टैक्सी में गिरी होगी तो ये बात बहुत लंबी जाने वाली है।" उसने बाहर गिरी हुई खून की बूंदे अपने पास पड़े दोे में से एक रुमाल से (वो अपने साथ हमेशा दो रुमाल रखता था) साफ की और उस रुमाल को पिछली जेब में रख दिया।


अब बैग को फिर से खींचकर वह टर्मिनस में जाने लगा और मन में ही भगवान को याद करने लगा। उसने बड़बड़ाते हुए बोला, "टैक्सी में बुंदे ना गिरी हो तो अच्छा हैं!"


आयुष ने बांद्रा टर्मिनस में टिकट लेकर, स्टेशन पर अपने बैग के साथ खड़ा हो गया और महज दो मिनट के अंदर उसको ट्राम आती हुई दिखी जिसमें उसे बैठना था। काफी भीड़भाड़ की वजह से उसको थोड़ी दिक्कत हुई पर वो बैग के साथ बिना किसी समस्या, एक डिब्बे में चढ़ने में सफल रहा।


जैसे ही ट्राम चली उसे लगा लोग उसे घुर रहे थे। आयुष को नहीं पता था कि लोग उसे सही में घुर रहे थे या फिर यह सिर्फ एक अहसास था। जब उसने आंखे उठाकर देखा तो जाना की सब सही में उसकी ही तरफ देख रहे थे।


सब लोग जो ट्राम में चढ़े थे वो वेतन वर्ग वाले थे और किसी के पास इतना सारा सामान नहीं था, जितनी बड़ी बैग आयुष लेकर चढ़ा था। सब उसे घुर रहे थे क्योंकी आम तौर पर इतनी बड़ी बैग लेकर सफ़र करने वाले दूर तक जाने वाली ट्रेन में सफर करते थे। ऊपर से आयुष का बैग बहुत सारी जगह रोक रहा था। 


वह उन सबको नजरअंदाज करने लगा और विचारों की गर्ता में डूब गया। उसकी विचारमाला टूटी जब आवाज़ आया, "दादर स्टेशन।"


यहां पे उसको उतरना था और पार्टी पर पहुंचना था। वो समझ नहीं पा रहा था कि बांद्रा जैसी जगह को छोड़कर सबने दादर में पार्टी रखने के फैसले को समर्थन क्यों दिया।


उसने बैग को उठाया और देख लिया की अब कहीं खून कि बूंदे गिरी तो नहीं। सब अच्छी तरह देख लेने के बाद वह जल्दी से उतरने लगा और दरवाज़े से बाहर जाते हुए जिस जगह पर खड़ा था वहां आखरी नजर घुमाते हुए देख लिया की अब भी कहीं खून की बूंदे दिख न जाए। उसके नसीब ने साथ दिया और कहीं पर भी खून नहीं गिरा था।


बस अब क्या था, वह ट्राम से बाहर निकला और सोचा कि जिस जगह उसे जाना है वह पैदल पांच मिनट की दूरी पर है। अब वो फिर से टैक्सी में बैठने का जोखिम नहीं उठा सकता था। उसने दादर स्टेशन से बाहर आकर चलना शुरू किया।


दूसरी तरफ बांद्रा में इमाम अपनी टैक्सी की पीछे की सीट के नीचे गिरी हुई खून कि बूंद का सैंपल इकठ्ठा कर रहा था, जो कि अब आयुष को भारी पड़नेवाला था।


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